श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 38 में भगवान श्रीकृष्ण राजस सुख का वर्णन करते हैं। यह सुख इंद्रियों और विषयों के संयोग से उत्पन्न होता है, जो प्रारंभ में अमृत जैसा प्रतीत होता है, लेकिन अंततः विष समान कष्टदायक हो जाता है। इस श्लोक में बताया गया है कि ऐसा सुख क्षणिक और अस्थायी होता है। जानें राजस सुख की वास्तविकता और इसके प्रभाव।
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