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जीवन परिचय : सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं।उन्हें सबसे ज़्यादा प्रसिद्धि अपनी रचना प्रसिद्धि झाँसी की रानी (कविता) के लिए मिली। सुभद्रा जी राष्ट्रीय चेतना के प्रति सजग कवयित्री रही। उन्हें स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल जाना पड़ा। उनकी रचनायें वातावरण चित्रण-प्रधान शैली में रही और उनकी भाषा सरल तथा काव्यात्मक रही। सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में हुआ. उनके पिता श्री रामनाथसिंह जमींदार थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। बचपन से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता की भावना मिलती है ।खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के उपरांत वे जबलपुर आ गई थीं। १९२१ में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं और वे दो बार जेल भी गई थीं। वे एक लेखक और कवियत्री होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी सेनानी भी थीं। १५ फरवरी १९४८ को एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया था। 'बिखरे मोती', सुभद्रा कुमारी चुहान जी का पहला कहानी संग्रह है। इसमें कुछ कहानियों के नाम हैं- भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंछलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम्ब के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई व् अनुरोध! उनके लेखन शैली सरल बोलचाल की भाषा है और अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपाजिसकी कुछ कहानियां हैं - उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईर्ष्या, अंगूठी की खोज, चढ़ा दिमाग, व वेश्या की लड़की । इन सब कहानियों का मुख्य स्वर पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है। सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी और एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में जान गयीं।