अम्बरीष इक्ष्वाकु वंशी राजा मांधाता के पुत्र और मुचुकुन्द के भाई थे। वो भगवान विष्णु के परम भक्त थे और उनके लिए प्रत्येक एकादशी को व्रत रखते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने अपना सुदर्शन चक्र उन्हें भेंट कर दिया था, जिसकी अम्बरीष विधिवत पूजा करते थे।
एक बार ऋषि दुर्वासा अम्बरीष के राज्य में पधारे। अम्बरीष के व्रत खोलने का समय हो गया था और दुर्वासा ऋषि यमुना में स्नान के लिए गये हुए थे। व्रत खोलने का समय बीता जा रहा था इसलिए अम्बरीष ने ऋषि के वापस आने के पहले ही पानी पीकर व्रत खोल दिया।
जब दुर्वासा ऋषि वापस आए और उनको इस बात का पता चला तो उनको अत्यंत क्रोध आया। उनको लगा अम्बरीष ने उनके बिना व्रत खोलकर उनकी अवहेलना की है।
ऋषि ने अपनी योगविद्या से एक राक्षस को जन्म दिया और उससे अम्बरीष को मारने के लिए कहा।
अम्बरीष को इस प्रकार संकट में देखकर सुदर्शन चक्र ने राक्षस का वध कर दिया और ऋषि दुर्वासा को मारने के लिए उनकी ओर बढ़ा।
ऋषि दुर्वासा अपनी जान बचाने के लिए ब्रह्मदेव और शिवजी की शरण में गए। दोनों ने ही उनको भगवान विष्णु के पास जाने को कहा।
दुर्वासा ऋषि भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सुदर्शन को रोकने की विनती की। विष्णुजी ने ऋषि दुर्वासा को अम्बरीष की शरण में जाकर उनसे क्षमा माँगने को कहा।
अंततः दुर्वासा ऋषि ने अम्बरीष के सामने नतमस्तक होकर उनसे क्षमा माँगी, तब जाकर सुदर्शन शांत हुए और ऋषि की जान बची।
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