Tikkhuton Ka Paath (Guru Vandan) तिक्खुतों का पाठ (गुरु वंदन) •
जब कभी हम संत मुनिराज के पास जाते हैं अथवा मुनिराज हमारे सामने आते दिखते हैं तो हम तिक्खुतों का पाठ का उच्चारण कर वंदन करते हैं। तिक्खुतों के उच्चारण के साथ किया गया विधिपूर्वक भाव वंदन अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है।
गुरु वंदन का पाठ
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तिक्खुत्तों आयाहिणं पयाहिणं करेमि,
वंदामि, नमंसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि
कल्लाणं मंगलं, देवयं, चेइयं,
पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि।
• भावार्थः- भगवन्! दाहिनी और से प्रारम्भ करके पुनः दाहिनी और तक आपकी तीन बार प्रदक्षिणा करता हूँ। आपको मैं वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, आपका सत्कार करता हूँ, सम्मान करता हूँ। आप कल्याण रूप हैं, मंगल रूप हैं, देव स्वरूप हैं, चैत्य स्वरूप यानी ज्ञान स्वरूप हैं। मैं आपको मस्तिष्क झुकाकर आपके चरण कमलों में मन, वचन और काया से सेवा भक्ति अर्थात् पर्युपासना एवं वंदना करता हूँ।
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तिक्खुतों के पाठ में चयनित शब्दों का रहस्यः-
गुरु वंदन हेतु, अभिव्यक्ति के लिए तिक्खुतो के पाठ में विनय के सूचक चार शब्द हैं। नमनसामि का मतलब मैं शरीर से झुकता हूँ। वंदामि का अर्थ मैं वाणी द्वारा आपके गुणों का आदर करता हूँ। मन से गुरु के प्रति सक्कारेमि, अहोभाव का सूचक है तो सम्माणेमि का मतलब गुरु को देख मेरी प्राथमिकता आपके समीप आकर दर्शन की है। इस प्रकार के सही भावपूर्वक वंदन करने से मन, वचन और काया तीनों का तालमेल हो जाता है। वाणी से गुरु का गुणगान करने एवं उनको कल्याणकारी, मंगलकारी, देव स्वरूप कहने से उनके प्रति श्रद्धा, आदर, बहुमान की अभिव्यक्ति होती है और मन चुम्बक की भांति गुरु के प्रति आकर्षित होने लगता है। जिससे वंदन करने वाले में भावात्मक बदलाव आ जाता है। इसके साथ ही उसमें रेकी और प्राणिक हिलींग के सिद्धान्तानुसार गुरु की ऊर्जा, आशीर्वाद की तरंगों का प्रवाह होने लगता है। फलतः व्यक्ति की अशुभ लेश्याएँ शुभ में परिवर्तित होने लगती है। आभा मंडल शुद्ध होने लगता है। दूसरों के जो-जो गुणों एवं दोषों का हम बखान करते हैं, वे हमारे अंदर भी विकसित होने लगते हैं। अर्थात् गुणाणुवाद से, वंदन कर्ता में भी सद्गुण बढ़ने लगते हैं। परिणाम स्वरूप वंदन कर्ता भय, तनाव, दुःख, नकारात्मक सोच आदि भावों से मुक्त होने लगता है एवं उसमें अभय, सन्तोष, प्रसन्नता, उत्साह का प्रार्दुभाव होने लगता है। आत्मा कर्मो के आवरण से मुक्त एवं हल्की होने लगती है। हल्की वस्तु ऊपर उठती है। अतः सही विधि द्वारा गुरु वंदन पाठ से भावों द्वारा गुरु वंदन से नीच गौत्र का बंध नहीं होता। वंदन करते समय दृष्टि गुरु की तरफ, भावों में गुरु के प्रति श्रद्धा एवं विनय तथा वाणी में गुरु के गुणों के प्रति प्रमोदभाव की अभिव्यक्ति हो। वंदन बिना किसी स्वार्थ एवं कामना के अहोभाव पूर्वक होना चाहिए अन्यथा वह मात्र द्रव्य वंदन ही होगा, जिससे अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा। चिन्तनपूर्वक समझकर की गई धार्मिक क्रियाओं से लाभ बहुत बढ़ जाता है। तिक्खुतों के पाठ में उच्चारित प्रत्येक शब्द के रहस्य का चिंतन करते हुए यदि शारीरिक क्रिया करें तो वह क्रिया कभी भार स्वरूप नहीं लगती। रोग भी दुःख, तनाव, भय, अशान्ति का प्रमुख कारण है। गुरु वंदन से कषाय मंद होते हैं। प्रमाद दूर होता है और संयमित जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। फलतः अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। •