इन दिनों सब कुछ मानो थम गया है — समय, उम्र, इच्छाएँ और विचार। इस आत्ममंथन से भरे एपिसोड में एक व्यक्ति अपने भीतर की यात्रा को साझा करता है — वह यात्रा जहाँ स्मृतियाँ धुंधली हैं, पर अनुभूतियाँ तीव्र हैं।
प्रकृति और चेतना के अद्वितीय संगम में, एक शांति है, एक मौन है जो भीतर के सोए हिस्सों को जगा देता है।
गंगा की लहरों, चाँद की चुप्पी और साथ बैठे अजनबियों के भीतर डूबी कहानियों के बीच, यह कहानी जीवन की उसी सूक्ष्म पूर्णता को पकड़ती है, जो कहती है — "शायद तुम भी उसी ठहरते समय में साँस ले रहे हो…"
एक ऐसा एपिसोड जो आत्मा को छूता है, और आपको अपनी ही अनकही यात्रा से जोड़ देता है।