आकाश मिश्रा लखनऊ में रहने वाला एक 15 साल का मेधावी छात्र था। हर साल क्लास में अव्वल आने वाले आकाश को इस साल 10वीं बोर्ड की परीक्षा देनी थी। दिन-रात मेहनत करने वाले आकाश से उसके माता-पिता ख़ुश रहते थे। स्कूल में भी टीचर्स और स्टूडेंट्स उसकी वाहवाही करते नहीं थकते थे। इस साल प्री-बोर्ड में भी आकाश ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन न जाने क्यों उस एग्ज़ाम के बाद से ही आकाश में कुछ परिवर्तन दिखाई देने लगे थे। आकाश कभी गुमसुम रहता तो कभी एकदम नॉर्मल, एकदम ख़ुश। आकाश को दरसअल समझ नहीं आ रहा था कि दोस्त तो उसके बहुत से हैं लेकिन तब भी उसे कभी-कभी अकेलापन क्यों महसूस होता है? आजकल सुबह उठने का मन भी नहीं करता और दिनभर बिस्तर में पड़े रहने को जी चाहता है। दरसअल इतने सालों में आकाश में कॉम्पटिशन कि भावना काफी बढ़ गई थी। उसे बस हमेशा फर्स्ट आना था, कम नंबर लाना वह सहन ही नहीं कर पाता था और इस साल बोर्ड परीक्षा के रिज़ल्ट की टेंशन भी उसे सता रही थी। मन ही मन वह डरता था कि कि मेरे नंबर कम आने से पापा-मम्मी, मेरे टीचर्स या मेरे दोस्त मुझसे बात करना बंद करना पसंद कर देंगे, मुझसे प्यार करना छोड़ देंगे। बस ऐसी ही कुछ-कुछ बातें हर टाइम उसके दिमाग में घूमती रहती और वह अकेले में रोता रहता।