This poem is written by rizwan khan sultan alig
फिरता था जिस की याद में लाचार रात भर
बैठा रहा वो सामने दिलदार रात भर
कंधे पे रख के सर मेरे सोया जो देर तक
दिल को लुभाया वो बहुत किरदार रात भर
बाहों का हार डाल कर मेरे गले में वो
करता रहा वो मुझ को यूं ही प्यार रात भर
खुशियों के साए में मेरी गुजरी तमाम shab
लज्जत उठाई हुस्न से इस बार रात भर
दोनों की सांसें हो गईं आपस में मुंटकिल
होता रहा ये इश्क में हर बार रात भर
रूहों के इत्तेहाद में