अनाथ और विधवा मानी के लिए जीवन में अब रोने के सिवा दूसरा अवलम्ब न था । वह पांच वर्ष की थी, जब पिता का देहांत हो गया। माता ने किसी तरह उसका पालन किया । सोलह वर्ष की अवस्था में मुहल्लेवालों की मदद से उसका विवाह भी हो गया पर साल के अंदर ही माता और पति दोनों विदा हो गए।