Poetry Writer:विनीत चौहान
क्या कहे,कितना कहे,किससे कहे और क्यों कहे!!
हाथरस की नृशंस घटना पर न तो कुछ ज्यादा लिखने का मन है और न बोलने का,बस ये सोचियेगा की क्या बनते जा रहे है हम और कैसा समाज बना रहे है हम। न चरित्र,न नैतिकता और न इंसानियत। 21वीं सदी का भारत इतना पत्थर और इतना बर्बर होगा ये न सोचा था।अपनी अपनी राजनैतिक पार्टियों के तलवे चाटने वाले स्वार्थी लोगों से,गटर से ज्यादा सड़ांध मारते रिया सुशांत के नशे में धुत्त बिके हुए मीडिया से और अपनी सत्ता के नशे में सत्तान्ध नेताओं से न्याय की उम्मीद छोड़ दीजिये। किसी को देश के आम आदमी से कोई सहानुभूति नहीं,ये जंग हमारी है और हमें ही लड़नी है और ये मत सोचिएगा की किसी और का घर जला तो हमें क्या क्योंकि नवाज़ देवबंदी जी ने कहा है:
जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है
आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है