प्रेम की, प्यार की, त्याग की, समर्पण की कोई भाषा नहीं होती, होता है सिर्फ जुड़ाव, ऐसा जुड़ाव कि एक पल के लिए अलग होते ही एक दूसरे की कमीं खलने लगती है चाहे यह जुड़ाव खून का हो या फिर मन का।
किसी ने क्या खूब कहा है-प्रेम होता,तो कोई भेदभाव न होता,न कोई किसी से अलग होता,न ही कोई भूखा सोता।।न हम रोते, न वो रोता।। प्रेम होता तो तो कोई भेदभाव न होता।