दिनकर जी ने कहा था एक नहीं दो दो मात्राएँ नर से भारी नारी। जयशंकर प्रसाद दम कहा-नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नभ पग तल में , पीयूष स़़्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में। हमारा हिंदी साहित्य भरा पड़ा है ऐसे अनेक सूक्तियों सूत्रों कविताओं व लेखों से पर क्या नारी को उसका वह स्थान मिल पाया है जिसकी वह हकदार है? कुछ मेरे मित्र हाँ भी कह सकते है पर बहुत ऐसे मिलेंगे जो हाँ कहने में थोड़ा हकलाएँगे। आखिर क्यों? कई बार मेरा मन अपने आप से प्रश्न भी करता है कि आखिर क्या कारण है कि महिला को अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए महिला दिवस मनाने की जरूरत पड़ रही है? शायद इसका कारण स्वयं नारी ही है। आप मुझसे सहमत हो तो यह कहानी आपके लिए और असहमत हों तब तो यह कहानी आपके लिए ही है।अपने विचार मुझे [email protected] पर भेजिए।