यस्य॑ सं॒स्थे न वृ॒ण्वते॒ हरी॑ स॒मत्सु॒ शत्र॑वः। तस्मा॒ इन्द्रा॑य गायत॥
युद्ध दो प्रकार के होते हैं - आंतरिक तथा बाह्य| भीतर के युद्ध के लिए ज्ञान, मानसिक बल चाहिए| बाह्य युद्ध के लिए ज्ञान, मानसिक तथा शारीरिक बल चाहिए| इस मंत्र में ईश्वर ने हमें सूर्य से उसके तेज, प्रकाश, दृढ़ता तथा बंधनकारी गुणों को युद्ध जीतने हेतु ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया है| अर्थात किसी भी प्रकार का युद्ध जीतने हेतु मनुष्य को ईश्वर से जीत की प्रार्थना कर, सूर्य के समान तेजस्वी पुरुषार्थ करना चाहिए|
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