सप्त चक्र और कुंडलिनी को कैसे जागृत करे
1. मूलाधार चक्र / Base Chakra
स्थान : यह रीढ़ की सबसे निचली सतह पर गुदा और लिंग के बीच होता है। इस चार पंखुरिया वाले चक्र को "आधार चक्र" भी कहा जाता हैं। यह शरीर के दाएं और बाएं हिस्से में संतुलन बनाने, अंगों का शोधन करने का काम करता है। यह पुरुषों में टेस्टिस और महिलाओं में ओवरी की कार्य प्रणाली को सुचारू रखता है। यह वीरता और आनंद का भाव दिलाता हैं। 99% लोगो की चेतना इसी चक्र मर अटकी रहती हैं।
"मंत्र : लं"
इस मन्त्र का नियमित जाप करने और भोग, निद्रा और सम्भोग पर काबू रखने से इसे जागृत किया जा सकता हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र / Sacral Chakra
स्थान : रीढ़ में पेशाब की थैली (यूरिनरी ब्लैडर) के ठीक पीछे स्थित होता है। इस चक्र में 6 पंखुरिया होती हैं। आपकी ऊर्जा एक चक्र पर एकत्रित होने पर मौज-मस्ती, घूमना-फिरना की प्रधानता होंगी। यह अनुवांशिक / Genetic, यूरिनरी और प्रजनन प्रणाली पर नजर रखने के साथ ही जरूरी हारमोंस के स्त्रावण को नियंत्रित करने में मददगार है। इस चक्र के जागृत होने से क्रूरता, अविश्वास, गर्व, आलस्य, प्रमाद जैसे दुर्गुणों का नाश होता हैं।
"मंत्र : वं"
3. मणिपुर चक्र / Solar plexus
स्थान : यह ठीक नाभी के पीछे होता है। इसमें 10 पंखुरिया होती हैं। जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहाँ एकत्रित होती है वह अधिक कार्य करते हैं और कर्मयोगी कहलाते हैं। यह पाचक व अंत स्त्रावी ग्रंथि से जुड़ा है। पाचन तंत्र को मजबूती देने व शरीर में गर्मी व सर्दी के सामंजस्य को बनाता है। मणिपुर चक्र के जागृत होने से तृष्णा, भय, लज्जा, घृणा, मोह आदि भाव दूर होते हैं। आत्मशक्ति बढ़ती हैं।
"मंत्र : रं"
4. अनाहत चक्र / Heart Chakra
स्थान : रीढ़ में ह्रदय के पीछे थोड़ा नीचे की ओर स्तिथ होता है। इस चक्र में 12 पंखुरिया होती हैं। ह्रदय और फेफड़ों को सफाई कर इनकी कार्य क्षमता को सुधारता है। इसके जागृत होने से कपट, हिंसा, अविवेक, चिंता, मोह, भय जैसे भाव दूर होते हैं। प्रेम और संवेदना जागरूक होती हैं।
"मंत्र : यं"
5. विशुद्धि चक्र / Throat Chakra
स्थान : यह गर्दन में थायराइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है। यह 16 पंखुरियों वाला चक्र हैं। बेसल मेटाबोलिक रेट (BMR) को संतुलित रखता है। पूरे शरीर को शुद्ध करता है। इस 16 पंखुरियों वाले चक्र को जागृत करने से 16 कला का ज्ञान होता हैं। भूख और प्यास को रोक जा सकता हैं। मौसम के प्रभाव को रोक जा सकता हैं।
"मंत्र : हं"
6. आज्ञा चक्र / Brow Chakra
स्थान : चेहरे पर दोनों भोहों के बीच स्थित होता है। इस चक्र में अपार सिद्धिया और शक्तिया निवास करती हैं।मानसिक स्थिरता व शांति को बनाए रखता है। यह मनुष्य के ज्ञान चक्षु को खोलता है।
"मंत्र : ऊँ"
7. सहस्त्रार चक्र / Crown Chakra
स्थान : सिर के ऊपरी हिस्से के मध्य स्थित होता है। इसे शांति का प्रतीक भी कहते हैं। यही मोक्ष का मार्ग भी कहलाता हैं।
भूमिका : शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक सभी स्तर में सामंजस्य बनाता है।
सप्त चक्रों को जागृत करने के लिए आहार और व्यवहार में शुद्धता और पवित्रता की जरुरत होती हैं। स्वयं की दिनचर्या में जल्दी उठना, जल्दी सोना, सात्विक आहार, प्राणायाम, धारणा और ध्यान करना जरुरी होता हैं। अपने मन और मस्तिष्क को नियंत्रण में रखकर आप लगातार चक्रों को जागृत करने का प्रयास करे तो कुंडलिनी जाग्रत होने लगती हैं।