जैन धर्मावलंबियों की मान्यतानुसार मूल मंत्र णमोकार महामंत्र है। इसी से सभी मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। एक णमोकार महामंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए।
★ पहली श्वास में- णमो अरिहंताणं- उच्छवास में- णमो सिद्धाणं
★दूसरी श्वास में- णमो आयरियाणं- उच्छवास में- णमो उव्ज्झायाणं
★ तीसरी श्वास में- णमो लोए उच्छवास में- सव्वसाहूणं ◆
णमोकार मंत्र में 35 अक्षर हैं। णमो- नमन कौन करेगा? नमन् वही करेगा, जो अपने अहंकार का विसर्जन करेगा। णमोकार मंत्र में 5 बार नमन् होता है अर्थात 5 बार अहंकार का विसर्जन होता है। णमोकार महामंत्र बीजाक्षरों (68) की वजह से विलक्षण है, अलौकिक है, अद्भुत है, सार्वलौकिक है।
णमोकार मंत्र का अर्थ:
अरिहंतो को नमस्कार
सिद्धो को नमस्कार
आचायों को नमस्कार
उपाध्यायों को नमस्कार
सर्व साधुओं को नमस्कार
ये पाँच परमेष्ठी है। इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है। यह संसार में सबसे उत्तम मंत्र है।