Nav Devta Pujan नव देवता पूजन ■
यह नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी ॥1॥
ही श्री अर्त्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य यालयेभ्यो जन्म, जरा, मृत्यु विनाशनाय जलं निर्व. स्वाहा।
चंदन अर्चा को लाए, संसार ताप नश जाए।
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी॥2॥ ॐ हीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्व. स्वाहा।
अक्षत ये धवल चढ़ायें, अक्षय पद हम भी पाएँ
नव देवी पूजा भाई, इस जग में मंगलदायी॥3॥
ॐ हीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्व, स्वाहा।
यह पुष्प चढ़ाने लाए, मम् कामरोग नश जाएँ।
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी I4॥
ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा।
चरु चढ़ा रहे मनहारी, है क्षुधा रोग परिहारी
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी।॥5॥
ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैन्य चैत्यालयेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्व स्वाहा।
पावन यह दीप जलाए, मम मोह तिमिर नश जाए।
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी॥6॥
ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैय चैत्यालयेध्यो महा मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्व स्वाहा।
अग्नी में धूप जलाएँ, हम आठों कर्म नशाएँ।
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी ॥I7॥
ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्व, स्वाहा।
फल ताजे यहाँ चढ़ाएँ, अब मोक्ष सुफल को पाएँ।
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी॥8॥ ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो मोक्ठफल प्राप्ताये फलं निर्व. स्वाहा।
यह अर्घ्य चढ़ाते भाई जो है अनर्ध्य पददायी
नव देव पूजते भाई, इस जग में मंगलदायी ॥9॥
ॐ ह्रीं श्री अर्हत्सद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधु जिनधर्म जिनागम जिनचैत्य चैत्यालयेभ्योभ्यो अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ्य निर्व. स्वाहा।।
दोहा- शांती धारा से मिले, मन में शांति अपार। अतः आपके पद युगल, देते शांती धार॥
।। शांतये शांति धारा ।।
दोहा-
पुष्पांजलि के हेतु यह, पावन लाए फूल।
कर्मों से मुक्ती मिले, शिव पद हो अनुकूल॥
।। दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।