श्री जिनसागरसूरि रचित नवग्रह शांति विधान है। उसमें भी एक-एक ग्रहों की शांति हेतु एक-एक तीर्थंकर के नाम हैं। यथा
तुर्की पद्मप्रभ श्चैव, सोमे चन्द्रप्रभ स्तथा। मंगल वासुपूज्य श्च बुधे मल्लिजिनेश्वरः।।1।।
गुरौ तु वर्धमानश्च शुक्रे पुष्पजिनेश्रः। राहौ नेमिजिनेंद्र स्याच्छनौ च मुनिसुव्रतः।।2।।
केतौ तु पाश्र्वनाथश्चेत्येते नवग्रहाधिपाः। कल्याणं संततं कुर्युः भव्यं भव्यैकसंहतेः।।3।।
सूर्य ग्रह के लिए पद्प्रभ, सोमग्रह के लिए चंद्रप्रभ, मंगल ग्रह हेतु वासुपूज्य, बुध ग्रह के लिए मल्लिनाथ, गुरु ग्रह हेतु वर्धमान, शुक्र ग्रह हेतु पुष्पदंतनाथ, शनि ग्रह हेतु मुनिसुव्रतनाथ, राहु ग्रह हेतु नेमिनाथ एवं केतु ग्रह के लिए पार्श्वनाथ भगवान हैं। ये इन नवग्रहों के स्वामी माने हैं।