Pradakshina Dohe प्रदक्षिणा दोहे •
परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा करते समय बोलने के दोहे •
अनादि काल से चार गति रूप संसार में परीभ्रमण करती आत्मा के भव भ्रमणा को टालने परमात्मा के चारों और प्रदक्षिणा दी जाती है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी रत्नत्रयी की प्राप्ति के लिए परमात्मा की 3 प्रदक्षिणा की जाती है ।
प्रदक्षिणा देते समय प्रदक्षिणा के दोहे बोले । दोहे मंद स्वर में, गंभीर अवाज में सम्यग दर्शन ज्ञान चारित्र की प्राप्ति के लिये बोलने चाहिएं । •
१. काल अनादि अनंत थी भव भ्रमण नो नहीं पार,
ते भव भ्रमणा निवारवा प्रदक्षिणा देउं त्रण वार ॥१॥
भमतिमां भमता थकां भव भावठ दूर पलाय,
दर्शन ज्ञान चारित्र रुप प्रदक्षिणा त्रण देवाय ॥२॥
२. जन्ममरणादि भय टले, सीझे जो दर्शन काज,
रत्नत्रयी प्राप्ति भणी दर्शन करो जिनराज ॥३॥
ज्ञान बड़ा संसार में ज्ञान परमसुख हेत,
ज्ञान विना जग जीवडा न लहे तत्त्व संकेत ॥४॥
३. चय ते संचय कर्म नो रिक्त करे वली जेह,
चारित्र नाम निर्युक्ते कां वंदो ते गुणगेह ॥५॥
दर्शन ज्ञान चारित्र ए रत्नत्रय निरधार,
त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे भवदुःख भंजनहार ॥६॥