ये कहानी है उत्तराखंड के टेहरी के शहर की पुराना टेहरी शहर तो टेहरी डैम के लिए भेंट चढ़ चूका था और नया सहर अभी पूर्ण विकसित नहीं हो पाया था हालाँकि देखने में नया टेहरी सहर बहुत सुन्दर बसाया गया है
सहर के पास के गाँव में निक्किता नाम की छोटी लड़की रहती है गाँव क्या कहेंगे अब तो वह भी टेहरी सहर ही हो गया है क्यूंकि अब नया सरकारी हॉस्पिटल यहीं शिफ्ट हो गया है और उसके चलते तमाम दवाई से लेकर खाने पीने की सभी दुकाने भी यहाँ बन गयी हैं
निक्कू अभी 4.5 साल की है प्यार से माँ बाप निक्किता को निक्कू ही बुलाते हैं निक्कू बोलती बहुत है शब्द सीखने और उन्हें यद् रखने की गजब की छमता उसमे है वह अपने माता पिता और 6 साल के अपने भाई विभु के साथ यहाँ रहती है पिता पास के ही होटल में ही काम करते हैं माँ सिलाई कड़ाई का काम करती है
विभु कुछ महीनो से और अधिक बीमार है और उसकी बीमारी बढती ही जा रही है लगातार पिछले 1 साल से उसका इलाज चल रहा है उसके माँ बाप जो भी कमाते हैं विभु के इलाज में लगा देते हैं
सरकारी से लेकर प्राइवेट सभी हॉस्पिटल में वे उसको दिखा चुके हैं और डॉक्टर्स ने उसके इलाज के लिए ऑपरेशन ही एक मात्र उपाय बताया है
परन्तु वह ऑपरेशन भी यहाँ नहीं देहरादून के एक बड़े निजी हॉस्पिटल में ही हो सकता था और उसमे खर्चा बहुत होने वाला था
और इतने पैसे उसके माँ बाप के पास नहीं हैं
एक दिन की बात है निक्कू के माँ बाप आपस में बात कर रहे थे की हमने आज तक जो भी कमाया वह अपने बेटे के इलाज में लगा दिया है और अब डॉक्टर्स बोल रहे है की ऑपरेशन किये बिना केवल चमत्कार ही उसे बचा सकता है
दीपू की माँ रो रही है और अपने पति से बोल रही है केसे भी करके मेरे बेटे को बचा लो
मै अपने बेटे के बिना जी नहीं पाऊँगी
मै भी मर जाउंगी
हे भगवन मेरे बेटे की जगह मुझे उठा ले
माँ का विलाप देख पिता भी बहुत दुखी हो रहे थे
और अपने बेटे को निहारते हुए उनके आँखों में भी आंसू आ रहे थे
पर बाप हैं न इस लिए पूरी हिम्मत करके आंसुओं को समेट रहे हैं और छुपाने की कोशिस कर रहे हैं
अभी लगभग सुबह के 8 बज रहे हैं निक्कू के पिता इतने निराश हैं की आज उनका भी काम पर जाने का मन नहीं और माँ का तो अपने बेटे को देख देख कर बुरा हाल है
पिता अपने होटल मेनेजर से पहले ही इलाज के लिए काफी रकम एडवांस में ले चुके थे
माँ ने भी अपने पुराने ग्राहकों से जो उनसे कपडे सिलवाने आते थे उनसे पैसे उधर ले रखे हैं
जो शादी के जेवर थे वो पहले ही बेच चुके हैं
निक्कू हालाँकि बहुत छोटी थी उसे भावनाएं व्यक्त करना नहीं आता था पर माँ बाप को देख कर वह भी चिन्ति थी और उसे लग रहा था की वह एसा क्या करे की उसके माँ बाप और भाई सभी खुश हो और उसका भाई ठीक हो जाये
पता नहीं निक्कू के दिमाग में क्या आया व उठी और दुसरे कमरे में गयी वहां से अपने भाई की गुल्लक निकल ली
माँ जब भाई को पैसे देती थी तब निक्कू भी अपने लिए पैसे मांग लेती थे वह पैसे वह भी भाई की गुल्लक में दाल देती थी
उसने उस गुल्लक को खोला और मुठी भर कर चीलर पैसे हाथ में भर लिए
उसके छोटे से हाथ में शायद 4 से 5 रूपये ही आये होंगे और वह घर से बाहा चल दी
दीपू के माता पिता अपनी इस बहुत बड़ी मुसीबत का क्या समाधान हो सोच सोच कर दुखी हो रहे थे उन्हें निक्कू का कुछ भी ध्यान ही नाह रहा
माँ तो बस रोये जा रही थी और विलाप कर रही थे और पति से बोल रही थी
मेरे बेटे को केसे भी करके बचा लो
इधर निक्कू घर से बहार आयी और एक केमिस्ट शॉप पर पहुंची और काउंटर पर पहुँच कर बोली अंकल मेरी बात सुनो
वह केमिस्ट की दुकान घर से १०० मीटर के दूरी पर सरकारी बड़े हॉस्पिटल के पास ही थी
वह इतनी छोटी थी की काउंटर तक नहीं पहुँच पा रही थी केमिस्ट पास ही खड़े एक व्यक्ति से बात कर रहा था
निक्कू ने अपने हथेली से एक रूपये का सिक्का निकल कर जोर जोर से काउंटर पर मरना शुर किया
क्यूंकि निक्कू नजर नहीं आ रही थी केमिस्ट और वह व्यक्ति जो आपस में बात कर रहे थे उस आवाज से डिस्टर्ब हो रहे थे
केमिस्ट थोडा झल्लाया और बोला कोन है वहां भागो यहाँ से
निक्कू के छोटे छोटे हाथ भी काउंटर पर बजा कर थक गाय थी
वह भी उसी अंदाज में बोली
देख नहीं सकते मैं इतनि देर से खट खता रही हूँ
केमिस्ट ने नीचे झानक कर देखा एक छोटी सी बच्ची खाड़ी है
बिना उसकी बात सुने केमिस्ट ने बोला
बेटा हमारे यहाँ चोच्क्लेट नहीं मिलती
और मै अपने भाई से बात कर रहा हूँ म