साधना पञ्चकं ज्ञान यज्ञ के 16वें प्रवचन में पूज्य स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी महाराज ने ग्रन्थ में प्रतिपादित 15वें सोपान की भूमिका एवं रहस्य पर प्रकाश डाला। इसमें शंकराचार्यजी कहते हैं की "ब्रह्मैकाक्षरं अर्थ्यतां" - अर्थात ब्रह्म, जो एक और अक्षर है, उसे जानने की जिज्ञासा प्रकट करो। जब हमें किसी ज्ञानी की सन्निधि की प्राप्ति का सौभाग्य मिलता है, तो हमें उनसे क्या पूछना चाहिए, यह इस सोपान में बताया जा रहा है। किसी विशेषज्ञ का उचित लाभ उसकी विशेषता के विषय का प्रश्न पूछने में होता है। इसलिए किसी ब्रह्म-ज्ञानी से संसार की समस्या, राजनीती, धन-दौलत, ज्योतिष आदि आदि के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए, बल्कि केवल जीवन के शाश्वत तत्व के बारे में ही पूछना चाहिए। उचित प्रश्न जिज्ञासु के विवेक और प्राथमिकताओं का सूचक होता है। अतः ऐसा प्रश्न ही हमारी आगे की यात्रा की भूमिका बनता है।