योग-वेदान्त।एपिसोड 283 म.भा.शान्तिपर्व 199(2)- जपयज्ञ(4)। दान लेनेका वचन देकर न लेना भी पाप है- एक रोचक कथा।
* जपनिष्ठा और जपके फलके सम्बन्धमें राजा इच्छ्वाकु,यम,काल,ब्राह्मण और मृत्युकी कथा (भाग 2)।
* ..... ब्राह्मणसे जपके फल का दान स्वीकार करने के उपरान्त राजा इछ्वाकु ने पूंछा कि उस जप का फल है क्या? ब्राह्मण ने कहा कि मैंने जप के समय किसी फल की कामना ही नहीं किया था तो कैसे बता सकता हूँ कि उसका फल क्या है?आपने दान स्वीकार कर लिया है तो अब अस्वीकार करने से असत्यवादी होने का पाप लगेगा।
* सत्य की महिमा- सत्य से बडा़ कोई तप यज्ञ इत्यादि नहीं है...। सत्य ही वेदांग है, सत्य ही ॐकार है, सत्य से ही सारी सृष्टि नियंत्रित होती है...।
* जो दोष दान का वचन देकर न देने में है, वही दान लेने का वचन देकर न लेने में भी है ।
* एक और रोचक विवाद - ऋण लौटाने वाला हठ कर रहा था कि मैं ऋणी हूँ अतः स्वीकार करो।महाजन कह रहा था कि मेरा तुम्हारे ऊपर कोई ऋण नहीं है।इस विवाद का निर्णय कैसे हुआ, जानने के लिये पूरी आडियो सुनें। अगले एपिसोड में जारी ....।