पतञजलि ऋषिने स्वप्न को परिभाषित नहीं किया है। निद्रा की परिभाषा से इतना स्पष्ट है कि निद्रामें स्वप्न सम्मिलित नहीं है। अतः पातञ्जल योगके अनुसार
स्वप्नको प्रमाण, विपर्यय, विकल्प और स्मृति में से किसी में सम्मिलित मानना चाहिये। स्वप्नको समझने के लिये जाग्रतको और जाग्रतको समझनेके लिये स्वप्नको समझना आवश्यक है। स्वप्न को समझ गये तो जाग्रतको समझ जायेंगे। वस्तुतः मनुष्य जिसे जाग्रत समझता है वह भी स्वप्न ही है।
व्यवहार की बात यह है कि स्वप्न सात्विक राजस तामस तीन प्रकार के होते हैं और तदनुसार उनके फल भी होते हैं। क्रमशः...