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योग-वेदान्त पर दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती जी के प्रवचन। प्रस्थानत्रयी, योगसूत्र, योगवासिष्ठ इत्यादि के अतिरिक्त श्रीरामचरित मानस, रामायण, महाभारत एवं पुराण इत्यादि की वेदान्तपरक व्य... more
FAQs about दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती:How many episodes does दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती have?The podcast currently has 510 episodes available.
December 16, 2020E 129. योग-वेदान्त। स्वप्न का स्वरूप क्या है? स्वप्नका द्रष्टा कौन है? माण्डूक्य और प्रश्नोपनिषद।इस एपिसोड में - इस शरीर में सोता कौन है ? जागता कौन है और स्वप्न कौन देखता है? कर्मेन्द्रियां ? अथवा ज्ञानेन्द्रियां ? अथवा प्राण ?अथवा मन अथवा बुद्धि अथवा अहंकार अथवा चित्त? स्वप्न जीवात्मा देखता है तो जीवात्मा क्या है ? शरीरमें जीवात्मा का स्थान कहां है? निद्रामें सुख का अनुभव किसको होता है और कैसे होता है?...more14minPlay
December 16, 2020एपिसोड 128. योग-वेदान्त- स्वप्न - आत्मा का दूसरा चरण। माण्डूक्य मंत्र 4. की व्याख्या।मैं अरु मोर तोर तैं माया। यह सामान्य मनुष्यका व्यवहार है। इसमें समस्त स्थूल विषय सम्मिलित हैं। स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाते हुये स्वप्नको सूक्ष्म बताते हैं। *देहमें मन है अथवा मनमें देह है? मनमें आकाश है अथवा आकाशमें मन है? *जब स्वप्नको ठीकसे समझ लेंगे तो जाग्रत भी ठीकसे समझमें आ जायेगा। स्वप्नको समझ लेने पर समझमें आ जायेगा कि जाग्रत भी स्वप्न है। सत हरि भजन जगत सब सपना।...more17minPlay
December 15, 2020E127. योग-वेदान्त-गीता 6.29-32. "यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति"। वास्तविक जागरण क्या है?*जागने वाला ही तो देखता है। *राग द्वेष उसीसे होता है जिसे आप अपनेसे अलग समझते हैं।अधिकार आप उसी पर जताना चाहते हैं जो आपसे अलग है।*जीवनकी वास्तविक समस्या यह नहीं कि मेरा क्या तेरा क्या। वास्तविक समस्या यह है कि मैं क्या हूँ। .....व्याख्याके लिये आडियो प्ले करें।...more17minPlay
December 15, 2020E 126. योग-वेदान्त। गीता 6.29-31. समदर्शन और समवर्तन (भाग 2)। व्यवहार और वेदान्तविचार।ध्यानका और विचारका विषय अलग अलग है। व्यवहार रूप देखता है वेदान्त स्वरूप देखता है। वस्तु वही रहती है किन्तु उसी के विभिन्न रूप बन जाने पर व्यवहार बदल जाता है। उसी मिट्टी से असुरों की भी प्रतिमा बनती है उसीसे देवताओं की भी। प्रतिमायें बन जाने के उपरान्त प्रत्येक के साथ अलग व्यवहार होता है। उसी स्वर्ण से अंगूठी बनती है , उसीसे कंगन, उसीसे हार। विचार अथवा वेदान्तदृष्टि यह है कि तीनों स्वर्ण हैं। व्यवहार यह है कि अंगूठी उंगली में, कंगन कलाईमें और हार गले में पहनना है।...more17minPlay
December 15, 2020E 125. योग-वेदान्त। समदर्शन और समवर्तन। गीता 6.29-30*योग सहायक है वेदान्तका। योग अभ्यासका विषय है वेदान्त विचार का। हां, विचारका अभ्यास अथवा ब्रह्माभ्यास कह सकते हैं। *वेदान्त का स्वाराज्य क्या है? महाराजका अर्थ क्या है? .....*समदर्शन यह है कि घडा़ सकोरा इत्यादि सब मिट्टी है। किन्तु व्यवहार में घडे़ और सकोरे का उपयोग यथायोग्य अलग अलग करना होगा।...more17minPlay
December 15, 2020E124.योग-वेदान्त।निवृत्तिक्रम-भाग2।वेदान्त और व्यवहारका सामञ्जस्य।व्यावहारिक सत्य और पारमार्थिक सत्य*योगशास्त्रकी स्वरूपस्थिति को वेदान्तमें मुक्ति कहते हैं। *धर्म व्यावहारिक सत्य बताता है और वेदान्त पारमार्थिक सत्य। *पहले व्यावहारिक सत्य की साधना करनी चाहिये। *वेदान्त से समदर्शन सीखिये, धर्मसे समवर्तन। समवर्तन सदा सापेक्ष होता है। सृष्टिमें निरपेक्ष समवर्तन असम्भव है। इसका अर्थ करना होगा - यथायोग्य व्यवहार। सबके साथ समान व्यवहार हो ही नहीं सकता। समदर्शन केवल विचार का विषय है। समदर्शन को समवर्तन का विषय नहीं बना सकते । *वेदान्त अभेद की बात करता है। धर्म भेद की। व्यवहार में अभेद सम्भव नहीं। विना भेदज्ञानके धर्म अथवा व्यववहार का सम्पादन हो ही नहीं सकता।...more17minPlay
December 14, 2020E 123. योग-वेदान्त। निवृत्ति का क्रम। कैवल्य क्या है? भक्तिमार्ग और ज्ञानमार्ग का विवेचन।पातञ्जल योगसूत्र का "द्रष्टा" (तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्) और वेदान्त (माण्डूक्य , बृहदारण्यक) का ब्रह्म (अयमात्मा ब्रह्म)। निवृत्ति और प्रवृत्तिमें अन्तर - निवृत्ति में अपने अतिरिक्त कोई वस्तु नहीं होगी। प्रवृत्ति विना दूसरी वस्तु के हो ही नहीं सकती। द्वैत और अद्वैत (भक्ति और ज्ञान) की प्रक्रिया में अन्तर। बाहरसे भीतर लौटना निवृत्ति है। भीतरसे बाहर जाना प्रवृत्ति है। पहले प्रवृत्ति मार्ग अपनाना चाहिये। दुष्प्रवृत्ति छोड़कर सद्प्रवृत्ति अपनायें। निष्काम सद्प्रवृत्ति के द्वारा चित्तको शुद्ध करते हुये निवृत्तिकी ओर बढ़ना चाहिये। चित्तशुद्धि होने पर ही आत्मा का साक्षात्कार होता है। यह समझ लीजिये कि ज्ञान मुख्य राजमार्ग है और भक्ति उस राजमार्ग तक पहुंचनेके लिये लिंकरोड है।...more15minPlay
December 14, 2020E 122. योग-वेदान्त। जागनेका अर्थ है - अपनी विश्वरूपता को पहचानना। माण्डूक्य मंत्र 2. *साधन चतुष्टय का ध्यान गुरुको भी रखना चाहिये। *अपरिपक्व को वेदान्तज्ञान देना वैसे ही है जैसे बन्दरके हाथमें उस्तरा देना। .......*एक ओर कहे कि "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या" , दूसरी ओर कहते हैं "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" , "सर्व ँ ह्येतद्ब्रह्म" । इस विसंगतिका क्या समाधान है? वैराग्यका क्या अर्थ है? यह सारा जगत ब्रह्म ही है तो इसमेंसे छोडो़गे क्या? क्या संसारको छोड़ने का अर्थ ब्रह्मको छोड़ना नहीं हुआ?...more16minPlay
December 14, 2020E 121 योग-वेदान्त - यम नियम- साधन चतुष्टय (भाग 3)*शमादि 6 सम्पत्तियां।*इन्द्रियनिग्रह का आरम्भ जिह्वासे करें।*श्रद्धा किसे कहते हैं।...more21minPlay
December 14, 2020E 120. योग-वेदान्त - यम नियम - साधन चतुष्टय (भाग2)योगरतो वा भोगरतो वा संगरतो वा संगविहीनः । यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं नन्दति नन्दति नन्दत्येव।।...more14minPlay
FAQs about दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती:How many episodes does दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती have?The podcast currently has 510 episodes available.