*परंतप का अर्थ = पर अर्थात् विपक्षी को अपने तेजसे सूर्यकी भांति तपाने वाला। इन्द्रियां भी पर हैं। अतः परंतप का दूसरा अर्थ है - इन्द्रियों को तपाने वाला अथवा जितेन्द्रिय।
*राजर्षि का अर्थ = जो ऐश्वर्यसम्पन्न हो और तत्वविविवेचन में भी सक्षम हो।
*भगवद्गीता के ज्ञानयोग का क्षत्रिय वर्ण से विशेष सम्बन्ध है। "एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप।। 4/2।।
यह ज्ञान परम्परागत रूप से राजर्षियों के पास था। कालक्रम में जब राजा लोग काम क्रोध राग द्वेष इत्यादि से ग्रसित होकर विषयासक्त हो गये तो यह ज्ञान नष्ट हो गया। अर्जुन
*गीतामें योग शब्द का अर्थ है "मार्ग" अथवा पद्धति।
हठयोग इत्यादि वाला योगशास्त्र योग की एक शाखा है। *चौथे अध्याय में योग शब्द का तात्पर्य ज्ञानयोग है।