वेद,वेदाङ्ग(षड्शास्त्र), षड्दर्शन,चतुर्दश विद्या,अष्टादश विद्या और इतिहास :-
1. वेद - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। 
2. वेदाङ्ग - 
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष - यह छः वेदाङ्ग कहे गये हैं। इन्हीको छः शास्त्र भी कहते हैं। 
3. चतुर्दश विद्या - 
चार वेद + छः शास्त्र + मीमांसा , न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र (स्मृतियां) - यह चौदह विद्या कही गयी हैं।
"अङ्गानि वेदाश्चत्वारो मीमांसा न्यायविस्तरः ।
पुराणं धर्मशास्त्रञ्च विद्या ह्येताश्चतुर्दश" ।। वायवीय संहिता,1/25।।
4. अष्टादश विद्या - उक्त चौदह विद्याओं में आयुर्वेद,धनुर्वेद,गंधर्ववेद और अर्थशास्त्र इन चार को जोड़कर गणना करते हुये अठारह विद्यायें कही गयी हैं
आयुर्वेदो धनुर्वेदो गांधर्वश्चेत्यनुक्रमात्।
अर्थशास्त्रं परं तस्माद्विद्या ह्यष्टादश स्मृताः।।उक्त, 1/26।।
उक्त सभी विद्याओं के प्रवर्तक साक्षात् शिव हैं। उन्होने इनकी रचना कर ब्रह्माजीको दिया।
अष्टादशानां विद्यानामेतेसां भिन्नवर्त्मनाम्।
आदिकर्ता कविः साक्षाच्छूलपाणिरिति श्रुतिः।।
5. षड्दर्शन - सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त - इन छः को दर्शन कहते हैं। षड्शास्त्र और षड्दर्शन के अन्तर को स्पष्ट समझना चाहिये। 
6. इतिहास - रामायण और महाभारत को इतिहास कहते हैं।
 
यह हुआ पारिभाषिक वर्गीकरण । किन्तु व्यवहार में उपरोक्त सभी को और तन्त्रशास्त्र सहित अन्य सनातनी धर्मग्रन्थों को भी शास्त्र कह देते हैं। इस प्रकार "वेद-शास्त्र" जुड़वां शब्द प्रयोग कर लेते हैं।