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*काशीमें अविमुक्त, तिलभाण्डेश्वर इत्यादि शिवलिंग।
*प्रयागमें दशाश्वमेध तीर्थ में ब्रह्मेश्वर नामक शिवलिंग ,सोमतीर्थ में सोमेश्वर नामक शिवलिंग।
* अयोध्या में नागेश्वर महादेव।
* काशी नगरी का अवतरण।
*परब्रह्म परमात्मा का स्त्री-पुरुष दो भागों में विभक्त होना।
*काशी विश्वेश्वर का प्राकट्य और माहात्म्य ।
*सदाशिव द्वारा काशी को प्रथमतः अपने त्रिशूल पर धारण करना और पुनः उसे मर्त्यलोक में स्थापित करना।
* काशी ब्रह्माण्ड से अलग है और सृष्टि का अन्त होने पर शिवजी काशी को पुनः अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और ब्रह्मा द्वारा नवीन सृष्टि की रचना होने पर पुनः मर्त्यलोक में स्थापित कर देते हैं।
* काशी नाम का अर्थ।
* ज्ञानी तो सर्वत्र मुक्त है, किन्तु काशी में मरने वाले समस्त प्राणी मुक्त हो जाते हैं।
*जो धर्मात्मा हैं वे काशी में प्राण त्यागकर ईसी जन्म के पश्चात् अथवा शीघ्र ही मुक्त हो जाते हैं। जो पापात्मा हैं वे काशी में मरते हैं तो अगले कुछ जन्मों तक भैरवी यातना भोगकर मुक्त होते हैं।
* काशीवास से संचित और क्रियमाण कर्म नष्ट हो जाते हैं। किन्तु प्रारब्धकर्म केवल भोगने से नष्ट होता है।
* एक ब्राह्मण को काशीवास कराने वाला स्वयं भी काशीवास का फल प्राप्त करके मुक्त हो जाता है।
* काशी में मरण और प्रयाग में मरण के फल में अन्तर।