एपिसोड 719. भागवतसुधा 11.
*गजेन्द्रमोक्ष कथा*
विचारविन्दु -
1. यह कथा चौथे मन्वन्तर की है।
कुल चौदह मन्वन्तर होते हैं। वर्तमान मे 7वां मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर- स्वायम्भुव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर आयेंगे.
2. त्रिकूट पर्वत की स्थिति - त्रिकूट नाम से अनेक पर्वत हैं। श्रीमद्भागवत में गजेन्द्र-ग्राह युद्ध वाले त्रिकूट पर्वत की स्थिति क्षीरसागर में बताई गयी है। क्षीरसागर में तो भगवान् विष्णु का निवास है। वह पृथिवी पर कैसे हो सकता है ? किन्तु क्षीरसागर है कहां?
समाधान - पुराणों की कथाओं में इतिहास भूगोल का सत्यापन हो भी सकता है और नहीं भी । ऐसा क्यों ? क्योंकि उनमें दृश्य और आनुश्रविक दोनों का वर्णन है। दृश्यका सत्यापन होता रहता है, आनुश्रविक का नहीं हो सकता। आनुश्रविक का श्रोत वेद में खोजना चाहिये। वेद की वेदता यही है कि वह अज्ञात का ज्ञापक है, मुख्यतः उन बातों को बताता है जिनका भौतिक सत्यापन नहीं हो सकता। वेद यदि बातों को बताये जिसको मनुष्य ज्ञात अथवा सत्यापित कर सके तो वेद मात्र अनुवादक हो जायेगा, उसमें वेदता नहीं रह जायेगी। वैज्ञानिक लोग शोध करके किन्ही किन्ही बातों को सिद्ध करने का जो दावा करते हैं, वह अनन्त रहस्यों में से किसी एक का मात्र संकेत होता है। अतः क्षीरसागर का भूगोल जानना मनुष्यके वशमें नहीं।
अस्तु, लौकिक धरातल पर गजेन्द्र-ग्राह युद्ध के सम्बन्ध में एक धारणा यह भी है कि यह नेपाल की नारायणी नदी में हुआ था। नेपाल से निकली हुयी नेपाल-भारत (उत्तर प्रदेश और बिहार में) की सीमा बनाने वाली विशाल नारायणी नदी है। नेपाल में और जहां तक वह दोनों देशों की सीमा बनाती है, वहां तक उसका नाम नारायणी है। इसमें नारायण का वास है इसलिये इसे नारायणी कहा जाता है।भगवान् नारायण का प्रतीक शालग्राम शिला इसी में मिलता है। नारायणीके सम्बन्ध में स्थानीय धारणा है कि यह क्षीरसागर से निकली है। जहां से यह पूर्णतया भारत में आ जाती है वहां से इसका नाम बडी़ गंडक हो जाता है। नेपाल तथा भारत के उत्तरप्रदेश और बिहार की सीमा पर नारायणी नदी के तट पर त्रिवेणीधाम है। यहां सोना, तमसा और नारायणी/गण्डकी नदियोंका संगम है।
*श्लोक सं 1 में व्यवसितो बुद्ध्या का अर्थ।
3. श्लोक सं 3 और 24 वेदान्त का सारसर्वस्व है।
4.भगवान् हरि अखिल अमरमय अर्थात् सर्वदेवमय हैं। गजेन्द्र ने किसी सगुणदेवता अथवा रूप की स्तुति नहीं किया। अतः ब्रह्मा शङ्कर इन्द्र इत्यादि में से कोई देवता नहीं आये। श्रीहरि प्रकट हुये क्योंकि वह सर्वदेवमय हैं(30)।
5. वेद ही भगवान् के वाहन गरुण हैं। वेदमय गरुण पर सवार होकर श्रीहरि आये(31)।
6.वह भगवान् हरि नारायण अखिल ब्रह्माण्ड के गुरु हैं। गजेन्द्र ने कहा - "नारायणाखिलगुरो भगवन्नमस्ते"(32)।
7. गजेन्द्र पूर्वजन्म में इन्द्रद्युम्न नामक यशस्वी राजा था। वह प्रजापालन छोड़कर अर्थात् वर्णाश्रमधर्मका उल्लंघन कर तपस्या करने लगा था, अतः अगस्त्य ऋषि ने हाथी होने का शाप दिया ।
8. गजेन्द्रमोक्ष का पाठ भोग और मोक्ष दोनों देता है। यह दुर्भाग्य भी मिटाता है और ब्रह्मज्ञान भी प्राप्त कराता है।
विशेषतः दुष्टग्रहों के कुयोग से छुटकारा पाने के लिये, दुस्वप्न के प्रभाव को दूर करने के लिये, दरिद्रता और ऋणसे मुक्ति इत्यादि के लिये इसका पाठ बहुत प्रभावकारी होता है।