इस बार अध्यक्ष पद के लिए गाँधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। इससे फ़ायदा कांग्रेस को ही होगा। बीजेपी जो नैरेटिव सेट करती रही है, उसको नुकसान होगा। राहुल गाँधी इसके ऊपर ख़ुद को रखने की कोशिश करेंगे कि वो पार्टी के साथ विचारधारा को बेहतर करना चाहते हैं, सड़क की राजनीति करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री पद, अध्यक्ष पद नहींं चाहते। अगले पाँच महीने तो राहुल गाँधी कहींं नहींं जा रहे हैं। कांग्रेस जो कनेक्ट करना चाहती है, वो कर पाएगी, या जनता कांग्रेस से ख़ुद को कनेक्ट किया हुआ महसूस कर पाएगी। क्या जनता राहुल गाँधी में संभावनाएँ तलाशने लगेगी कि राहुल 3500 किमी0 की यात्रा करके आई है। कार्यकर्ताओं में उत्साह आएगा, नई पीढ़ी में भी उत्साह आ सकता है, अगर कांग्रेस बेरोज़गारी, महँगाई पर क्या विचार प्रस्तुत करती है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि कांग्रेस कुछ राज्य जीते। अगर आम जनता को लगेगा कि कांग्रेस जीत सकती है, तो आम आदमी भी उसको वोट देगा। दो राज्यों में चुनाव के नतीजे करीब दिसंबर तक आएँगे। तब तक यात्रा उत्तर भारत से गुज़र रही होगी। अगर गुजरात और हिमाचल में चुनाव जीत जाती है, तो इससे लोग पास आएँगे। अगर गुजरात हार जाती है और हिमाचल में जीत जाती है, तो भी लोग साथ रहेंगे। अगर दोनों जगह हार जाती है, तो इससे राहुल गाँधी की भूमिका और भी निर्णायक हो जाएगी।