एपिसोड 547। ज्ञानका स्वरूप और प्रकटीकरणकी प्रक्रिया- ज्ञान किसे कहते हैं?ज्ञानका प्रयोजन क्या है? आप पढा़ई,खेती,नौकरी,व्यापार इत्यादि कोईभी कार्य करते हैं तो उसका कोई प्रयोजन अवश्य होता है। पढा़ई या तो जीविका पानेके लिये करते हैं अथवा सामाजिक प्रतिष्ठाके लिये अथवा ज्ञानके लिये।यद्यपि शुद्ध ज्ञान विद्यालयी पाठ्यक्रम में नहीं पढा़या जाता।ज्ञान सद्गुरु के उपदेश,उस उपदेशके अनुसार वेदान्तविचार और सत्संग से प्रकट होता है।ध्यातव्य है कि ज्ञान न तो उत्पन्न होता है और न ही लिया दिया जाता है। यह प्रकट होता है।पहले से है किन्तु ढंका हुआ है। अनादि कालसे जीवको अज्ञानी होनेका भ्रम हो गया है। यह छुपा हुआ खजाना है।सद्गुरुके उपदेशसे इसका पता चल जाता है। किन्तु पता चलने परभी सम्यक् विचार के सफल न होने तक परोक्ष रहता है। विचार इत्यादि उपायों के सफल होने पर ज्ञानका अनावरण हो जाता है और यह प्रत्यक्ष अथवा अपरोक्ष हो जाता है। जब तक परोक्ष रहता है तब तक ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय की त्रिपुटी बनी रहती है।अपरोक्ष होने पर यह त्रिपुटी समाप्त हो जाती है और ज्ञाता स्वयं ज्ञानरूप हो जाता है। उसे ज्ञप्ति कहते हैं। अर्थात् जहां न तो ज्ञेय है, न ज्ञाता है, न ज्ञानकी क्रिया अथवा ज्ञाता-ज्ञेय के बीचका सम्बन्ध।"जानत तुम्हहि तुम्हहि होइ जाई।" अस्तु, ज्ञानका प्रसिद्ध फल क्या है? मोक्ष।ज्ञानही मोक्ष है, ज्ञानही ब्रह्म है।
एक श्रोताने प्रश्न किया है कि "क्या ज्ञान चिरस्थाई होता है?"
उत्तर है कि, ज्ञान/मोक्ष/ब्रह्म अस्थाई या चिरस्थाई नहीं हो सकता। यह शाश्वत होता है, अविनाशी होता है, आत्यंतिक होता है। सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।अब ज्ञान का क्रमशः और विन्दुवार निरूपण करते हैं -
1.समस्त जीवों की सबसे बडी़ इच्छा क्या है?सब दुःखोंकी निवृत्ति और परमानन्दकी प्राप्ति। 2. मोक्ष का स्वरूप क्या है ?सब दुःखों की निवृत्ति और परमानन्द की प्राप्ति।3. मोक्ष कैसे होता है? ब्रह्मज्ञान से।
4.ब्रह्मज्ञान क्या है?ब्रह्मके स्वरूपको यथार्थ जानना।5. ब्रह्म क्या है?ज्ञान ही ब्रह्म है।यह आत्माही ब्रह्म है।मैं ही ब्रह्म हूँ। तुम ही ब्रह्म हो।
6.यह ब्रह्मज्ञान कैसे होता है ?सद्गुरु के उपदेश, सत्संग,शास्त्रानुशीलन और आत्मा-अनात्मा के विवेचन से।7. ब्रह्मज्ञान कितने प्रकार का है?
परोक्ष और अपरोक्ष भेद से दो प्रकार का।
8. परोक्षज्ञान का स्वरूप क्या है?
ब्रह्म सत्+चित्+आनन्द स्वरूप है, ऐसा जानना परोक्ष ज्ञान है।
9.परोक्ष ज्ञान कैसे होता है?
सद्गुरु और सत्शास्त्र के वचनों में विश्वास रखने से।10. परोक्षज्ञानका फल क्या है ?असत्वापादक आवरणकी निवृत्ति।अर्थात् ब्रह्म नहीं है, इस प्रकार के असत् भावकी पूर्ण निवृत्ति हो जाती है।
11. परोक्षज्ञान कब पूर्ण होता हैअर्थात् परोक्षज्ञान की अवधि क्या है?ब्रह्मनिष्ठ गुरु और वेदान्तशास्त्र के अनुसार ब्रह्म के स्वरूपका निर्धारण हो जाने पर परोक्षज्ञान पूर्ण हो जाता है अर्थात् ज्ञान अपरोक्ष हो जाता है।12.अपरोक्ष ज्ञान क्या है?मैं ही सच्चिदानन्द स्वरूप ब्रह्म हूँ, ऐसा ज्ञान अपरोक्ष ज्ञान है।13. अपरोक्षज्ञान कैसे होता है?
गुरुमुख से महावाक्य का उपदेश पाकर आत्मानात्म विचार करते हुये ब्रह्माभ्यास करने से।
14. महावाक्य क्या है ?
वह वाक्य जो जीव और ब्रह्म की एकता का बोध कराता है।15. अपरोक्षज्ञान कितने प्रकार का होता है?दो प्रकार का - अदृढ़ अपरोक्षज्ञान और दृढ़ अपरोक्षज्ञान
16.अदृढ़ अपरोक्षज्ञान किसे कहते हैं ?
जिस ज्ञानमें जीव और ब्रह्म की एकता का निश्चय तो होता है किन्तु असम्भावना और विपरीतभावना बनी रहती है।
17. असम्भावना क्या है?
प्रमाणगत संशय और प्रमेयगत संशय दोनों को असंभावना कहते हैं।18. प्रमाणगत संशय क्या है?वेदान्त में जीव और ब्रह्म के भेद का प्रतिपादन है अथवा अभेद का?इस प्रकार का संशय प्रमाणगत संशय है।
19. प्रमेयगत संशय क्या है?
जीव और ब्रह्म में भेद सत्य है अथवा अभेद?इस प्रकार का संशय प्रमेयगत संशय है।20. विपरीत भावना किसे कहते हैं?जीव और ब्रह्म में भेद है और यह देहादि प्रपञ्च सत्य है, इस प्रकार के निश्चयको विपरीत भावना कहते हैं।
21. अदृढ़ अपरोक्षज्ञान किसको और कैसे अथवा क्यों होता है ?जिसमें मल विक्षेप दोष पडे़ हुये हैं और जिसमें भेदवादी और ज्ञानमार्ग के विरोधी लोगोंके संगका संस्कार है और जिसकी ब्रह्म और जीव में द्वैतबुद्धिकी निवृत्ति नहीं हुयी है,
उसको गुरुमुख से महावाक्य का उपदेश होने पर भी दृढ़ अपरोक्षज्ञान नहीं होता अर्थात् उसको अदृढ़ अपरोक्ष ज्ञान होता है।अन्य विन्दु जिनका उत्तर इस एपिसोड में दिया गया है ः- 22. अदृढ़ अपरोक्षज्ञान का फल क्या है ?23. दृढ़ अपरोक्षज्ञान का स्वरूप क्या है?
24. दृढ़ अपरोक्षज्ञान कैसे होता है?
25. दृढ़ अपरोक्षज्ञान का फल क्या है ?