वेदान्त। एपिसोड 534. अपरोक्षानुभूतिः, श्लोक 18 की व्याख्या (भाग 4) विचार चन्द्रोदय 74-78 . सूक्ष्म शरीरका विश्लेषण (भाग 2)। नारायण। कल एपिसोड 532 में बताये कि
पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पांच कर्मेन्द्रियों, पाँच प्राण और मन तथा बुद्धि - इन 17 तत्वोंके संगठन से सूक्ष्म शरीर बनता है। यह सत्रहों तत्व अपंचीकृत पंचमहाभूतों के कार्य हैं। क्रमशः सभी सत्रह तत्वों का विश्लेषण करते हुये बताये कि "मैं" अर्थात् आत्मा इन सभी तत्वों की सक्रियता और निष्क्रियता को जानता हूँ। इसलिये "मैं" इन सत्रह तत्वों में से कोई नहीं ,और इन सत्रह तत्वों में से कोई भी मेरा नहीं। यह अपने-अपने जनक महाभूतों के हैं। "मैं" इनको जानने वाला हूँ और इनसे अलग हूँ। क्योंकि, ज्ञाता और ज्ञेय एक नहीं हो सकते।
अब आगे बताते हैं कि उक्त प्रकार के विश्लेषण और क्रमशः प्रत्येक तत्व के निराकरण से यह सिद्ध हुआ कि- 1. लिंगदेह अर्थात् सूक्ष्म शरीर और 2. उसके धर्म पुण्य-पाप का कर्तापना और 3. उसके पुण्य-पापके फल सुख-दुःख का भोक्तापना और 4. उसका मृत्युलोक से परलोक में आना-जाना और 5. उसकी वैराग्य शम दम इत्यादि सात्विकी वृत्तियां और 6. राग-द्वेष हर्ष इत्यादि राजसी वृत्तियां और 7. निद्रा आलस्य प्रमाद इत्यादि तामसी वृत्तियां और 8. शरीरयात्रा हेतु भूख प्यास इत्यादि (त्रिगुणात्मक ?) वृत्तियां, और 9. इन्द्रियों की पटुता मन्दता निष्क्रियता इत्यादि - यह सब मैं नहीं और यह सब मेरे नहीं।
इसी एपिसोड में उक्त 9 विन्दुओं में से क्रमशः प्रत्येक का विश्लेषण करते हुये यह स्पष्ट रहे हैं कि कैसे यह जानें कि वे 9 "मैं" अर्थात् आत्मा नहीं और कैसे वे मेरे अर्थात् आत्मा के नहीं और कैसे मैं सूक्ष्म शरीर नहीं अपितु सूक्ष्म शरीर का द्रष्टा हूँ।
इस प्रकार अब तक स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर का विश्लेषण और इनका आत्मा से असम्बन्ध सिद्ध किया गया। अब अगले एपिसोड में कारण शरीर और पञ्चकोशों का विश्लेषण करते हुये आत्मासे उनकी असम्बद्धता सिद्ध करेंगे।