भरद्वाज-याज्ञवल्क्य मिलन। प्रयागराज माघस्नान का चित्रण।
*"क्षेत्रं प्रजापतेः पुण्यं सर्वेषामपि दुर्लभम्।
लभ्यते पुण्यसंभारैः नान्यथार्थस्य राशिभिः।।
प्रयागराज स्वयं ब्रह्मा का पुण्यतीर्थ है। यह सभी तीर्थों का राजा और सबसे अधिक दुर्लभ है। बहुत पुण्यराशि संचित होने पर ही यहां आने अथवा यहां रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है । इसकी प्राप्ति धन की राशियों से नहीं होती।
*माघ मकरगत जब रबि होई। तीरथपतिहि आव #सब कोई।।
"#सब कोई" अर्थात् केवल भारत के नहीं, केवल पृथ्वीवासी नहीं अपितु सभी लोकों के लोग आते हैं जैसा कि स्कंदपुराण में कहा है -
"भुवोलोकाच्च भूर्लोकान्नागलोकात् ...
स्नातुं माघे समायान्ति प्रयागे अरुणोदये।।
*और केवल मनुष्य नहीं, देवता, दानव, यक्ष, इत्यादि सभी यहां विना भेदभावके स्नान करते हैं -
"देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।"
समयावधि की दृष्टि से दो प्रकार का कल्पवास - माघपर्यंत और मकर पर्यंत। अर्थात् पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक, दूसरा जब तक सूर्य मकर राशि में हैं तब तक -
पूर्णिमायां समारभ्य पूर्णिमायां समापयेत्। मकरे वा समारभ्य कुम्भे वाऽथ समापयेत्।।
*ऐसी धारणा है कि प्रयागराज में साक्षात् भगवान् विष्णु वैकुण्ठ से आकर माधवरूपसे मनुष्यों को विष्णुपद प्राप्त कराते हैं।