एपिसोड 590. देवीगीता (8)- मोक्षप्राप्ति के तीन साधन तथा देवीभक्ति के प्रकार
*कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग के लक्षण।
*सात्विकी, राजसी और तामसी भक्ति के लक्षण।
*पराभक्ति का वर्णन।
*देवी की भक्तिमें धनकी कृपणता नहीं करनी चाहिये।
*भक्तिकी जो पराकाष्ठा है , वही वैराग्य की भी पराकाष्ठा है और वही ज्ञान भी है। ज्ञान प्राप्त हो जाने पर भक्ति और वैराग्य स्वतः सिद्ध हो जाते हैं।
*ज्ञान से ही मुक्ति होती है, अन्य किसी प्रकार से नहीं। देवीकी भक्ति करने पर भी जिसे प्रारब्धवश ज्ञान नहीं हो पाता, वह देवी के मणिद्वीप में जाकर निवास करता है और उसे अन्तमें वहां ज्ञानकी प्राप्ति होती है।
*ज्ञानपरायण भक्तके प्राण उत्क्रमण नहीं करते। वह शरीर में रहते हुये यहीं ब्रह्मरूप हो जाता है। क्योंकि ब्रह्मको जानने वाला ब्रह्म ही होता है।
*जो वैराग्ययुक्त है किन्तु ज्ञानप्राप्ति से पूर्व शरीर छूट गया , वह ब्रह्मलोक में निवास करता है और पुनः पवित्रकुल में जन्म लेकर साधना करके ज्ञान प्राप्त करता है।
*एक जन्म में ज्ञान नहीं होता।
*मनुष्य शरीर दुर्लभ है, उसमें भी ब्राह्मणकुल दुर्लभ, उसमें भी वेदज्ञान दुर्लभ और वेदज्ञान होने पर भी शमादि षट्सम्पत्तियां तथा योगसाधन और सद्गुरु की प्राप्ति दुर्लभतम है। अनेक जन्मों के पुण्य से ही यह सब मिलता है। यह दुर्लभ चीजें पाकर भी जो इनका सदुपयोग न करे उसका जन्म निरर्थक है।