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योग-वेदान्त पर दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती जी के प्रवचन। प्रस्थानत्रयी, योगसूत्र, योगवासिष्ठ इत्यादि के अतिरिक्त श्रीरामचरित मानस, रामायण, महाभारत एवं पुराण इत्यादि की वेदान्तपरक व्य... more
FAQs about दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती:How many episodes does दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती have?The podcast currently has 510 episodes available.
November 11, 2020योगवासिष्ठ, 3.7- परमात्माका स्थान एवं स्वरूपपरमात्माका स्थान और स्वरूप। जीव को संसारकोटि में मानें या आत्मकोटि में?...more19minPlay
November 11, 2020मानस 19.4 एवं 20.1-2राम में पार्वतीजी को शंका थी किन्तु रामके नाममें उनका विश्वास दृढ़ विश्वास था। प्रणवमें केवल संन्यासियों का अधिकार है और वह केवल मोक्ष देता है , किन्तु रामनाम में सबका अधिकार है और यह भोग मोक्ष दोनों देता है। यह सर्वदा सबके लिये सुलभ भी है , सुखद भी।...more15minPlay
November 10, 2020योगवासिष्ठ, 3.5-6 मन की उत्पत्तिमन की उत्पत्ति किससे और कैसे हुयी? विश्वका मूल मन है, मन का मूल आत्मा है। आत्मा ही मन और समस्त जगत का मूलतत्व है। आत्माकी प्राप्ति ज्ञानसे होती है, कर्मसे नहीं। ज्ञानकी प्राप्ति साधुसंग और सत्शास्त्रों के अभ्यास से होती है। साधु कौन है ? जिसका आचरण शास्त्रानुसार हो, जिसमें ज्ञान हो तथा जिसमें वैराज्ञ हो। यह तीन जिसमें वह साधु है। सत्शास्त्र क्या हैं ? जिनमें अध्यात्मविद्या का वर्णन हो यथा, उपनिषद , ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता, यह योगवासिष्ठ इत्यादि। अध्यात्म विद्या किसे कहते हैं? जिसमें आत्मा का ज्ञान कराने वाले सिद्धान्त और प्रक्रिया का वर्णन हो। सत्संग और सत्शास्त्रके अभ्यास से विवेक उत्पन्न होता है और विवेकसे ज्ञानके विरोधी तत्व राग द्वेष इत्यादि नष्ट होकर चित्त निर्मल होता है , तदुपरान्त निर्मल चित्तमें आत्माका साक्षात्कार होता है।...more19minPlay
November 10, 2020मानस,19.3 रामनामका प्रभावजान आदिकवि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू।। सहसनाम सम सुनि सिव बानी। जपति सदा पिय संग भवानी।। विशेष - इस क्लिपमें "राम"नामजप की विधि भी बताई गयी है।...more14minPlay
November 09, 2020योगवासिष्ठ, 3.4 मनका स्वरूप, भाग 1मन का स्वरूप भाग 1. (नोट- धूप की प्रियता, तुषार, अन्धकार इत्यादि के वर्णनसे से ऐसा प्रतीत होता है कि जिस समय विश्वामित्रजी श्रीराम को मांगनेके लिये आये थे। वह शीत ऋतु के किसी मासका कृष्ण पक्ष था।) न बाह्ये नाऽपि हृदये सद्रूपं विद्यते मनः। सर्वत्रैव स्थितं चैतद्विद्धि राम यथा नभः।। पूर्णं पूर्णे प्रसरति शान्तं शान्ते व्यवस्थितम्। व्योमन्येवोदितं व्योम ब्रह्मणि ब्रह्म तिष्ठति।। नदृश्यमस्ति सद्रूपं न द्रष्टा न च दर्शनम्। न शून्यं न जडं नो चिच्छान्तमेवेदमाततम्।।...more20minPlay
November 08, 2020मानस, बालकाण्ड,19..2एवं श्रीरामोत्तरतापिन्युपनिषत्काशी में मरने वाले जीवको शंकरजी राम मंत्र देकर मुक्त कर देते हैं। श्रीरामोत्तरतापिन्युपनिषद के अनुसार, शंकरजीने यह वरदान एक हजार मन्वंतर तक तप करनेके फलस्वरूप श्रीरामसे प्राप्त किया। इस उपनिषद में वर्णित 47 मंत्रों वाले श्रीरामके दिव्य स्तोत्र का वाचन।...more25minPlay
November 08, 2020योगवासिष्ठ, 3.2भाग2 एवं 3.3वसिष्ठने रामको जिस आकाशज ब्राह्मण का उपाख्यान सुनाया वह ब्रह्मा ही है। उसीके लिये मृत्यु और यम का संवाद हुआ था। वह ब्रह्मा ही समष्टि मन है। यह सृष्टि उसी मनका संकल्प है। ब्रह्मा का केवल आतिवाहिक शरीर है क्योंकि वह मनोमात्र है , जीवों का शरीर आतिवाहिक के साथ आधिभौतिक भी है। ब्रह्मा स्वयं मनोरूप है और यह जगत् उसका संकल्पमात्र है अतः मनोराज्यकी भांति यह जगतभी असत् है। वस्तुतः आतिवाहिक ही आधिभौतिक रूप से भी प्रतीत होता है । ऐसी प्रतीतिका कारण यह है कि जीवको अज्ञानवश अपने स्वरूप का और आतिवाहिकत्वका दृढ़ विस्मरण हो गया है। जैसे भूतपिशाच होते नहीं किन्तु रोगीको भ्रमवश उनका आकार सा दिखाई देता है उसी प्रकार लोगोंको स्वरूप की दृढ़ विस्मृतिके कारण आतिवाहिक ही आधिभौतिक रूपसे प्रतीत होता है।...more24minPlay
November 07, 2020मानस। बालकाण्ड, 19.1, 2, रामोत्तरतापिन्युपनिषद् - प्रणव और राम शब्दकी व्याख्याप्रणव की व्याख्या। राम शब्दकी व्याख्या। तारक क्या है? किससे तारता है ? महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासी मुकुति हेतु उपदेसू।। रामदरबारकी प्रणवरूपता। लक्ष्मण= अकार/विश्व, शत्रुघ्न= ऊकार/तैजस, भरत = मकार/प्राज्ञ, राम = अर्धमात्रा/तुरीय। वाराणसी शब्द की व्याख्या। मनुष्य शरीरमें वाराणसी की स्थिति।...more28minPlay
November 07, 2020योगवासिष्ठ, 3.2 भाग 1मृत्यु और यमराजका संवाद। आकाशज विप्र का आख्यान। भौतिक शरीरको अपना स्वरूप समझने वाला अज्ञानी ही मृत्युका भोजन है, तत्वज्ञानी नहीं। तत्वज्ञानी चिन्मात्रस्वरूप है। अकेले मृत्यु किसीको नहीं मार सकता। जीवके कर्मही उसको मारते हैं, मृत्यु नहीं।उन्ही कर्मों की सहायतासे मृत्यु मारण करता है।...more26minPlay
November 06, 2020मानस, बालकाण्ड. 19.1बन्दौं नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।। बिधि हरिहरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो।।1।। यहां "रघुवर" शब्द राम का पर्यायवाची न होकर विशेषण है। इससे अन्य दो राम परशुराम और बलराम से दशरथनन्दन राम की विशिष्टता बतलाई गयी है। वेद ब्रह्मा विष्णु और शिव से ओतप्रोत हैं। उन वेदों का प्राण है प्रणव। प्रणव और राम एक ही हैं।...more26minPlay
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