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योग-वेदान्त पर दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती जी के प्रवचन। प्रस्थानत्रयी, योगसूत्र, योगवासिष्ठ इत्यादि के अतिरिक्त श्रीरामचरित मानस, रामायण, महाभारत एवं पुराण इत्यादि की वेदान्तपरक व्य... more
FAQs about दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती:How many episodes does दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती have?The podcast currently has 510 episodes available.
November 06, 2020योगवासिष्ठ, 3.1 भाग 2.केवल ज्ञानसे ही जीवकी मुक्ति होती है,कर्म अर्थात् तीर्थ व्रत पूजा उपासना इत्यादि से नहीं। समाधि से भी नहीं। किन्तु कर्म ज्ञान की पूर्ववर्ती सीढी़ है। कर्म चित्तकी शुद्धि के लिये हैं। चित्त शुद्ध होने पर ही ज्ञान होता है।...more26minPlay
November 05, 2020मानस, बालकाण्ड, 16 तथा गायत्री मंत्र और देवीभागवतका प्रथम श्लोक।रीछ इत्यादि सहित समस्त वानरी सेना की वन्दना। पशु पक्षी देवता मनुष्य असुर इत्यादि की वन्दना। शुकदेव सनकादि नारद इत्यादि समस्त मुनियों की वन्दना। विशेष वन्दना श्रीमाता सीता जीकी , श्रीविद्या की - जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधानकी।। ताके जुगपद कमल मनावों।जासु कृपा निरमल मति पावों।। जनकसुता और जानकी शब्दों में अन्तर। इस चौपाईमें गायत्रीमंत्र का समावेश है। जानकी गायत्रीका एक नाम है। "निरमल मति पावों" - यही प्रार्थना गायत्रीमंत्र में भी है और श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम श्लोक में भी। पांचवीं चौपाई में मानसके सभी सात काण्डों का बीज निहित है। दोहे में सीता-राम का अभेद।...more40minPlay
November 05, 2020योगवासिष्ठ, उत्पत्तिप्रकरण 3.3-12 - उत्पत्तिप्रकरण का औचित्य। आत्माकी परिभाषा।बन्धोऽयं दृश्यसद्भावातद् दृश्याभावेन बन्धनम्।न सम्भवति दृश्यं तु यथेदं तच्छृणु क्रमात्।।उत्पद्यते यो जगति स एव किल वर्धते। स एव मोक्षमाप्नोति स्वर्गं वा नरकं च वा।।न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः। न मुमुक्षुर्न वै मुक्तिरित्येषा परमार्थता।।ऋतमात्मा परं ब्रह्म सत्यमित्यादिका बुधैः। कल्पिता व्यवहारार्थं तस्य संज्ञा महात्मनः।। वेदव्यासजी ने भी कहा है - यच्चाऽपानोति यदादत्ते यच्चात्ति विषयानिह यच्चास्य संततो भावस्तस्मादात्मेति शब्द्यते।।...more26minPlay
November 05, 2020मानस, बालकण्ड, 16- 17। अवधपुरी एवं दशरथ इत्यादिकी वन्दनाअवधपुरी एवं दशरथ इत्यादिकी वन्दना...more23minPlay
November 04, 2020योगवासिष्ठ,2.18-20 मुमुक्षुव्यवहार प्रकरणका उपसंहारभागत्यागलक्षणा।उपमान और उपमेय में सर्वांगपूर्ण सादृश्यता नहीं खोजनी चाहिये। कथ्यको समझनेके लिये जितनी सादृश्यता घटित होती है केवल उतना ही ग्रहणकर शेषको छोड़ देना चाहिये। संपूर्ण सादृश्यता से तो दोनों वस्तुयें एक ही होंगी फिर किसकी किससे उपमा देंगे? वस्तुतः अद्वैतमें कोई दृष्टांत नहीं। क्योंकि ब्रह्म सद्वितीय नहीं और दृष्टांत के लिये दो का होना आवश्यक है। ***शास्त्रोंमें फलश्रुतियों के कथन केवल सद्वृत्ति जगाकर सदाचार में प्रवृत्त कराते हुये निष्कामता और अद्वैतकी सिद्धिके लिये हैं। कर्मकाण्ड और फलश्रुतियां उसी प्रकार हैं जैसे बच्चे को बुखारकी ओषधि पिलाने के लिये कहा जाय कि पी लोगे तो तुम्हारी चोटी तुम्हारे बडे़ भाई के समान हो जायेगी। *****ज्ञान और सदाचार परस्पर साथ रहकर बढ़ते हैं। एकके विना दूसरा निरर्थक है। ज्ञानं सत्पुरुषाचाराज्ज्ञानात् सत्पुरुषक्रमः। परस्परं गतौ वृद्धिं ज्ञान सत्पुरुषक्रमौ।।2.20.7।। न यावत्समभ्यस्तौ ज्ञानसत्पुरुषक्रमौ। एकोऽपि नैतयोस्तात पुरुसस्येह सिद्ध्यति।।2.20.9।। ****ब्रह्मसाक्षात्कार हो जानेपर विचार , शास्त्र, ज्ञान और गुरु सब छूट जाते हैं।...more21minPlay
November 03, 2020योगवासिष्ठ 2.17-18 ग्रन्थकी श्लोकसंख्या 32000. इसकी बडी़ विशेषता यह है कि यह युक्तियों से भरा है।* युक्तियुक्तमुपादेयं वचनं बालकादपि।अन्यत्तृणमिव त्याज्यमप्युक्तं पद्मजन्मना।।2.18.3।।युक्तिपूर्ण वचन बालकका भी हो तो ग्रहण कर लेना चाहिये और युक्तिहीन वचन ब्रह्माजी का ही क्यों न हो , उसको त्याग देना चाहिये। * योगवासिष्ठ अन्धविश्वास और आडम्बर का घोर खण्डन करता है। यह कुआं हमारे बाप दादा का बनाया हुआ है अतः इसीका जल पीयेंगे, यह सोचकर जो गंगाजल छोड़कर कूंये का जल पीता है, उसे कौन समझा सकता है? *वाणी क्रमशः अपना कार्य करती है , अकस्मात् नहीं। अतः निरन्तर दीर्घकाल तक शास्त्राभ्यास करना चाहिये।...more18minPlay
November 02, 2020मानस, बालकाण्ड, 14(च) से 15.1-31. गंगाजी स्नान और पान करने से पाप का हरण करती हैं, सरस्वती सद्विचारों के कहने सुननेसे अविवेक का हरण करती हैं। 2. शङ्करजी और पार्वतीजी गुरु भी हैं और माता-पिता भी । शङ्करजी रामजी के सेवक भी हैं, स्वामी भी हैं और सखा भी हैं। 3. "रामेश्वर" नाम का अर्थ- रामजी ने कहा - इसका अर्थ है रामके ईश्वर। शिवलिंग से आवाज आयी - नहीं, इसका अर्थ है कि राम हैं जिसके ईश्वर। मुनियों ने निर्णय किया कि जो राम हैं वही ईश्वर अर्थात् शङ्कर हैं । 4. शाबर मंत्रों की विशेषता ।...more18minPlay
November 02, 2020योगवासिष्ठ 2.16- मोक्षका चौथा द्वारपाल सत्संगका ते कान्ता कस्ते पुत्रः, संसारोऽयमतीव विचित्रः। त्रिजगति सज्जनसंगतिरेका, भवति भवार्णव तरणे नौका।। चर्पट पंजरिका, 20।।विशेषेण महाबुद्धे संसारोत्तरणे नृणाम्। सर्वत्रोपकरोतीह साधुः साधु समागमः।। अपि कष्टतरां प्राप्तैर्दशां विवशतां गतैः। मनागपि न संत्याज्या मानवैः साधुसंगतिः।। संतोषः परमो लाभः सत्संगः परमा गतिः।विचारः परमं ज्ञानं शमो हि परमं सुखम्।।...more18minPlay
November 02, 2020श्रीरामचरित मानस, बालकाण्ड, 14.4 से 14(ङ)।गोस्वामी तुलसीदासजी की एकमात्र मनोकामना - मानस ग्रन्थ को सज्जनोंके समाज में सम्मान मिले। "होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू।।" कीर्ति, ऐश्वर्य और रचना वही अच्छी है जिससे सबका भला हो।...more18minPlay
November 01, 2020योगवासिष्ठ 2.15, मनुस्मृति 4.12 एवं श्रीमद्भगवद्गीता 12.13-19 मोक्षका तीसरा द्वारपाल- संतोष।सन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।...more11minPlay
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