गुणोंके मिश्रण का वर्णन। मूढ़ किन्तु सत्यवादी ब्राह्मण सत्यव्रत द्वारा अनजाने में देवीके बीजमंत्र ऐं का बिन्दुरहित उच्चारण ऐ करने से उसमें पाण्डित्य का प्रादुर्भाव।
हिंसा और सत्य सम्बन्धी द्वन्द उपस्थित होने पर सत्यव्रत ने वधिकसे कहा - आंख देखती है किन्तु बोलती नहीं। वाणी बोलती है किन्तु देखती नहीं। तो आंख की देखी हुयी बात सत्य है या नहीं, इस सम्बन्धमें वाणी को कैसे प्रमाण माना जाय ?
या पश्यति न सा ब्रूते या ब्रूते सा न पश्यति।
अहो व्याध स्वकार्यार्थिन् किं पृच्छसि पुनः पुनः।।
गिरा अनयन नयन बिनु बानी।