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योग-वेदान्त पर दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती जी के प्रवचन। प्रस्थानत्रयी, योगसूत्र, योगवासिष्ठ इत्यादि के अतिरिक्त श्रीरामचरित मानस, रामायण, महाभारत एवं पुराण इत्यादि की वेदान्तपरक व्य... more
FAQs about दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती:How many episodes does दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती have?The podcast currently has 510 episodes available.
October 15, 2020योगवासिष्ठ, 2.9 शुभवासनाओं का आश्रय लेकर अशुभ वासनाओं पर विजय प्राप्त करें।वासना शुभ अशुभ दो प्रकार की होती है। नदी की दो धाराओंकी भांति । एक धारा अशुभ की ओर जा रही है, दूसरी शुभकी ओर। इनमेंसे एकको रोकेंगे तो दूसरी धारा स्वतः प्रबल होगी। शनैः शनैः रोकना चाहिये, अचानक नहीं, जैसा कि भगवद्गीतामें भी कहा है- शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया। पूर्वजन्मकी अशुभवासना का वर्तमान की शुभवासना द्वारा निराकरण करना चाहिये।...more21minPlay
October 15, 2020श्री मणिरत्नमाला भाग 5 श्लोक 4-5शत्रु कौन है - आपकी इन्द्रियां। मित्र कौन - वही इन्द्रियां यदि आपके वशमें हैं तो मित्र हैं। सुखसे कौन सोता है- समाधिनिष्ठ।जगा हुआ कौन है- जो सत् और असत् में अन्तर जानता है। दरिद्र कौन - जिसकी तृष्णा बडी़। धनवान् कौन - जो संतुष्ट है। मृत कौन - जो उद्यम नहीं करता। अमृत क्या है - इच्छाओं का त्याग।...more6minPlay
October 15, 2020मानस, मंगलाचरण, बाल. 8निज बुधिबल भरोस मोहि नाहीं। ताते बिनय करौं सब पाहीं।। ....जौं बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता।।...more18minPlay
October 14, 2020योगवासिष्ठ, 2.8 । भाग्य केवल भ्रम है। इस भ्रमका अधिष्ठान पुरुषार्थ है।योगवासिष्ठ,2.8 । ग्रह इत्यादि स्वतंत्ररूप से कुछ नहीं करते, वे केवल आपके पूर्वपुरुषार्थ के फल की सूचना देते हैं। अर्थात् वे पुरुषार्थके फलके वाचक अथवा दूत हैं। भाग्य केवल भ्रम है, उसी प्रकार जैसे अज्ञानवश रस्सीमें सर्पका भ्रम हो जाता है। भाग्यके भ्रमका अधिष्ठान पुरुषार्थ ही है।...more18minPlay
October 14, 2020मानस, बाल, दो. 7-7क और चौ 8.1जड़ चेतन सभी वस्तुयें कुसंग और सुसंग के अनुसार गुण और यशको प्राप्त करती हैं। शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में प्रकाश और अन्धकार की अवधि एक समान होती है। किन्तु, शुक्लपक्ष का चन्द्रमा बृद्धिक्रम में और पोषक गुण वाला होता है जबकि कृष्णपक्षमें ह्रासक्रममें और शोषक गुण वाला होता। इसी कारण एकका नाम उजाले का बोधक और दूसरेका नाम कालिमा का बोधक हो गया। गोस्वामी तुलसीदास जी सज्जन दुर्जन शुभ अशुभ सबको ब्रह्ममय देखते हुये प्रणाम करते हैं। "जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।" "सीयराममय सब जग जानी"।...more19minPlay
October 14, 2020श्रीमणिरत्नमाला (प्रश्नोत्तरीत) भाग 4(श्लोक 3)संसार (के भ्रम) को नष्ट करने वाला कौन है - आत्मज्ञान। मोक्षका हेतु क्या है - वही आत्मज्ञान। नरक का द्वार क्या है - वासना। स्वर्गप्राप्तिका साधन क्या है- अहिंसा।...more10minPlay
October 11, 2020योगवासिष्ठ,2.7. भाग्य और पुरुषार्थ भाग 5उद्यम को छोड़कर दैव पर निर्भर रहने वाला आत्मशत्रु है। वह धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों का विनाश करता है। पुरुषार्थ से ही बृहस्पति देवताओं के गुरु हुये, पुरुषार्थसे ही शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु हुये, पुरुषार्थसे ही लोकों की रचना होती है। दैव से नहीं। विना प्रयत्नके तो सामने थाली में रखा हुआ भोजन भी मुखमें नहीं जाता। पुरुषार्थ के तीन अनिवार्य कारक हैं - शास्त्राभ्यास, गूरुपदेश और अपना परिश्रम।...more22minPlay
October 11, 2020मानस, बाल. 7-1 से 6। सत्संग और कुसंग का प्रभाव।सज्जन व्यक्ति भी कभी भूलवश बुराई कर बैठते हैं और दुर्जन भी भूलवश ही कभी भलाई कर देते हैं। बादमें दोनों अपने अपने स्वभावमें स्थिर हो जाते हैं।...more23minPlay
October 11, 2020धर्म और तर्क।धर्मके विषयमें शास्त्रही प्रामाणिकताकी कसौटी है, मनमाना तर्क नहीं। आधुनिक कानूनमें भी न्यायालयमें आप केवल वही प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं जो साक्ष्य अधिनियम के अनुसार ग्राह्य हो। किसी विशेष अधिनियम सम्बन्धी प्रश्न पर उस अधिनियम और संविधान की सीमा में ही बहस कर सकते हैं। उसी प्रकार धर्मके सम्बन्ध में वेद-शास्त्र में कही हुयी बातें ही प्रमाण के रूपमें ग्राह्य हैं, अन्य सामाजिक-वैज्ञानिक चर्चायें प्रमाण नहीं हो सकतीं।...more8minPlay
October 10, 2020श्रीमणिरत्नमाला (प्रश्नोत्तरी) 3। प्रश्न 1-4।बन्धन, मुक्ति, नर्क और स्वर्ग का वास्तविक अर्थ। बद्धो हि को ? यो विषयानुरागी। को वा विमुक्तो? विषये विरक्तः। को वाऽस्ति घोरो नरकः? स्वदेहः। स्वर्गपदं किमस्ति? तृष्णाक्षयः।...more6minPlay
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